Essay on Sardar Bhagat Singh in Hindi Language भारत तो देश भक्तों की भूमि है यहाँ का कण –कण बलिदान की प्रेरणा देता है ऐसे ही शहीद सरदार भगत को भला कौन नहीं जानता जब भी कभी शहीद भगत सिंह का नाम लिया जाता है तो दिल में इनके लिए आपार श्रधा उमर पडती है , भगत सिंह का जन्म 28 सितम्बर 1907 पंजाब में ज़िला लायलपुर गाँव खटकड़ कलां में हुआ था यो आज कल पाकिस्तान में है। भगत सिंह का जन्म एक सिख परिवार में हुआ था। उनकी माता जी का नाम विद्यावती कौर था और पिता जी का नाम सरदार किशन सिंह था।
भगत सिंह की दादी ने उनके जन्म के बाद उनका नाम भागो वाला रखा था। जिसका अर्थ है अच्छे भागों वाला। बाद में उनका नाम भगत सिंह पड़ा था। बचपन में ही भगत सिंह में वीरता , देश भक्ति ,साहस और बलिदान की भावना कूट -कूट कर भरी हुई थी। बचपन में ही अंग्रेजों के विरुद्ध आपके मन में बदले की भावना घर कर गयी थी।
मात्र 14 वर्ष की उम्र में ही भगत सिंह ने पंजाब की क्रातिकारी संस्थाओं में काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्हें शादी के बंधन में बांधने की तैयारियां होने लगी और वो लाहौर से भागकर कानपुर आ गए । इसके बाद तो बस देश की आज़ादी के संघर्ष में ऐसे डूबे के अपना पूरा जीवन देश के लिए कुर्बान कर दिया। कानपूर में ही आप आज़ाद और दत्त से मिले
13 अप्रैल 1919 को जिलियांवाले बाग़ की घटना का भगत सिंह पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा और उनकी सोच में एक बड़ा परिवर्तन आया। तब उन्होंने उस बाग़ की मिट्टी को अपने माथे पर लगाकर इस घटना का बदला लेने की शपथ ली थी। उस समय भगत सिंह मात्र 12 वर्ष के थे।
सन 1928 में साईमन कमिशन के भारत आने पर भारतीय लोगों द्वारा जलूस निकला गया। पंजाब में भी लाला लाजपत राय के नेतुत्व में इस कमिशन का विरोध किया गया। इस जलूस में लाला जी पर लाठी चार्ज किया गया इन लाठियों के प्रहार से लाला जी की मौत हो गयी तो भगत सिंह आज़ाद जैसे देश भगत गुस्से में आ गए और भगत सिंह से अपने साथियों की मदद से अंग्रेज पुलिस अधिकारी सांडर्स को गोलियों से उड़ा दिया और इस तरह भगत सिंह और उनके साथियों ने लाला जी की मौत का बदला लिया।
8 अप्रैल सन 1929 को भगत सिंह और उनके क्रातिकारी साथियों ने असेम्बली में बम फेंक दिया। उनके असेम्बली में बम फेंकने का मुख्य उदेश था जालिम सरकार को उनके कार्यों के प्रति जागरूक करना । इसके बाद भगत सिंह और उनके साथियों को पकड़ लिया गया। सांडर्स की हत्या करने और बम केस के आरोप में सन 31 मार्च 1931 की रात को भगत सिंह ,सुखदेव सिंह ,राजगुरु को लाहौर की जेल में फांसी दी गई। धन हैं वे महान शहीद यो फांसी के तख्ते पर हंसते -हंसते झूल गए। इन तीनों की शहीदी देश के लिए आज़ादी का पैगाम लेकर आई इन देश भक्तों की शाहीदी से आज़ादी का संग्राम और भी तेज़ हो गया 15 अगस्त 1947 को भारत आज़ाद हुआ …
सरदार भगत सिंह और उनके साथियों का जीवन आज के नवयुवकों के लिए प्रेरणा का स्रोत है उन जैसे देश भगतों के बलिदान और त्याग के फलसरूप भारत ने आज़ादी प्राप्त की। – Thanks
“सर फरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है “
“देखना है ज़ोर क्तिना बाजुए कातिल में है “
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Sardar Bhagat Singh Essay in Hindi Language 800 words – 2
28 सितंबर 1907 को पंजाब के लायलपुर गांव में सरदार किशन सिंह के घर उनकी पत्नी विद्द्यावती ने जब भगत सिंह को जन्म दिया उस वक्त पिता और दोनों चाचा जेल में बंद थे पर इनके पैदा होते ही तीनों छूट गए। इसी वजह से दादा अर्जुन सिंह व दादी जयकौर अपने इस पोते को भागोंवाला कहती थी।
चाचा अजीत सिंह और करतार सिंह सराभा जैसे क्रांतिकारियों को अपना आदर्श मानने वाले व बचपन से ही क्रांतिकारियों की जीवनियां पढ़ने वाले भगत सिंह बचपन से ही बहादुर थे। गर्म खून के भगत सिंह को बचपन से ही देश पर राज करते अंग्रेज फूटी आंख नहीं सुहाते थे और वे चाहते थे के कब अंग्रेज भारत को छोड़ें। उनके अत्याचारों से भगत तिलमिलाए हुए थे।
1919 में जलियांवाले बाग़ की घटना से तो भगत सिंह क्रोध से जल उठे और घटना के अगले दिन स्कूल जाने के बहाने सीधे जलियांवाले बाग़ पहुंचे और खून से सनी मिटटी को एक बोतल में भर लिया जिसे वो अपने साथ लाये थे। भगत सिंह इस मिटटी पर रोज फूल -माला चढ़ाते थे। नेशनल कॉलेज में भगत सिंह का परिचय उग्र विचारों के सुखदेव, भगवती चरण वोहरा और झंडा सिंह जैसे क्रांतिकारियों से हुआ। सुखदेव और भगवती चरण भगत सिंह के गहरे मित्र बन गए।
घर वालों के विवाह करने को कहने पर भगत सिंह ने कहा के उनका विवाह तो आज़ादी से हो चुका है और विवाह की बेड़ियां वो अपने पैरों में नहीं पहन सकते। आग से भरे भगत सिंह के समाजवादी विचारों से आज़ाद बहुत प्रभावित थे। जल्दी ही भगत सिंह आज़ाद के प्रिय बन गए। उस समय तक रामप्रसाद और अशफाकुल्ला खान के शहीद होने से आज़ाद अकेले पड़ गए थे। किन्तु भगत संघ ने उन्हें हिम्मत दी और व सुखदेव और राजगुरु से मिलवाया जो निशानेबाज और साहसी थे।
लाहौर में साइमन कमीशन के विरोध प्रदर्शन के समय लाला लाजपत राय पर पुलिस अधिकारी स्कॉट के सहयोगी सांडर्स ने लाठी से प्रहार किया जिससे लाला जी के सीने पर गंभीर चोटें आयीं और 17 नवंबर 1928 को उनकी मृत्यु हो गयी। भगत सिंह , सुखदेव , आज़ाद और राजगुरु ने लाला जी की मौत का प्रतिशोध लेने की ठानी भगत सिंह और राजगुरुज को स्कॉट को मारने का काम सौंपा गया और चंद्रशेखर आज़ाद को उन दोनों की रक्षा का।
घटना वाले दिन जयपाल के इशारा करने पर भगत सिंह और राजगुरु ने सांडर्स को मौत के घाट उतार दिया और तीनों घटना स्थल से सुरक्षित निकल गए। सांडर्स की हत्या ने पूरे देश में खलबली मचा दी और पुलिस भगत सिंह, राजगुरु और चंद्रशेखर को ढूंढने लगी। भगत सिंह भेष बदल कर दुर्गा भाभी और राजगुरु के साथ सुरक्षित निकल गए। भगत सिंह फ्रांस के क्रांतिकारी वेलां से बहुत प्रभावित थे उन्होंने वेलां की तरह संसद में बम फोड़कर सबको चौंका देने की सोची।
आज़ाद को भी योजना पसंद आयी पर वे भगत सिंह को इस काम पर भेजना नहीं चाहते थे किन्तु भगत सिंह सरफ़रोशी की तमन्ना की जिद्द के आगे विवश हो स्वीकृति देनी पड़ी। भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने 8 अप्रैल 1929 को बम फेंकने के बाद भागने की वजाय खुद को गिरफ्तार करवा दिया ताकि वह अंग्रेजी हकूमत के खिलाफ बगावत कर सकें।
उन्होंने जानबूझकर असेंबली में खाली जगह पर दो बम फोड़ दिए और जोर से इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाने लगे और पर्चे फेंके जिसमें लिखा था। ‘बहरों’ को सुनाने के लिए बम फोड़ने की जरूरत होती है। इसके बाद उन्होंने स्वयं को गिरफ़्तार करवा दिया। इस घटना ने वायसराय के साथ इंग्लैंड को भी हराकर रख दिया और भगत सिंह व साथी नौजवानों की प्रेरणा बन गए और उनका दिया गया नारा ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ राष्ट्रीय नारा बन गया और देश में अंग्रेजों के खिलाफ एक माहौल बन गया।
अंग्रेजों ने भगत सिंह और सुखदेव को एक दूसरे के खिलाफ भड़काने का प्रयत्न किया लेकिन वह विफल रहे अंत में अंग्रेजी हकूमत के इशारे पर फांसी की सजा सुना दी पर इससे भी वह न डरे न झुके। फांसी के लिए 24 मार्च 1931 का दिन तय किया गया। पर जनता के आक्रोश के डर के कारण अंग्रेजों ने 23 मार्च शाम 7 बजकर 33 मिंट पर भगत सिंह , सुखदेव और राजगुरु को फांसी के तख्ते पर चढ़ा दिया।
मृत्यु के समय भगत सिंह पूरे 24 वर्ष के भी नहीं हुए थे वे 28 सितम्बर को 24 साल के होते। प्रशासन की संवेदनहीनता इतनी ज्यादा थी के शहीदों के शव तक उनके घर वालों को नहीं दिए गए।
आज भी भगत सिंह अपने साथी शहीदों के साथ देश के कण -कण में बसे हुए हैं और उनकी शहादत ने ही भगत सिंह को सरदार और शहीद – आजम जैसे नाम दिलवा रखे हैं। भगत सिंह महज एक क्रन्तिकारी ही नहीं देश भगत होने साथ ही एक लेखक ,शायर व् समाज सुधारक भी थे। उनमें देशभक्ति के जज्बे के साथ ही देश के विकास के लिए एक दृष्टी व् वैचारिक चिंतन भी था। (युवराज)
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